हर आदमी की जिन्दंगी सिर्फ एक प्रश्नात्मक जिज्ञासा से बना है ︱ आगे क्या? वो क्या ?ये अच्छा ये बुरा जैसे प्रश्नो में उलझते हुऐ वह जन्म दर जन्म यात्रा करता ही रहता है और यह सोच नहीं पता की-हर प्रश्न वह खुद पैदा करता है और फिर खुद ही हल कर रहा है ︱ बस ये भ्रम हो जाता है की प्रश्न उसका है उत्तर किसी और का︱︳प्रश्न उत्तर शायद बस इसी का नाम जीवन है︱
हर आदमी बनावटी झूठ में जीता है ︱अव्वल दर्जे के ये मूर्खो ने वस्त्र बनाया है सोचो सभी लोग बिना वस्त्रो के होते तो कितना सुन्दर प्रतीत होता ︳सभी एक जैसे होते सभी खुले-खुले कोई छिपाव नहीं हर स्त्री -पुरुष का शरीर ही खुद बेहतरीन वस्त्र हैं ︳ईश्वर की सबसे सुन्दर रचना को वस्त्र से अवतरित करना अपमान नहीं ︳इसीलिए तो मनुष्य दुखी है ! वह सदा दुखी ही रहता है उसने इच्छाओ के रंग -बिरंगे हल्के - भारी सुन्दर हजारो -लाखो वस्त्रो को पहन रखा है︱धन का,शक्ति का,यश का,प्रतिष्ठा का,लोभ का,लालच का,मोह का,मन का,अपमान का,स्वर्ग का,नर्क का,जन्म का,मरण का ,आदि ︱ये तेरा वस्त्र︱ ये मेरा वस्त्र ︱
उतार क्यों नहीं देते इन वस्त्रो को ? सच को प्रकट होने दो सच जो हमेशा नंगा होता है︱बिना वस्त्र का जो का त्यों ︱
किसी प्याज की छिलन की तरह देखो पहले अनुपयोगी छिलका उतर जाता है ︱फिर मोती परत ,फिर झीनी परत ,फिर स्थूल परत ,फिर सुक्ष्म परत ,परत दर परत और अंत में शुन्य सिर्फ शुन्य ︱
और तब बचते है सिर्फ एक स्त्री और एक पुरुष एक दूसरे को प्यासे अतृप्त देखते हुए सदियों से युगो से आदिकाल से ︱कामातुर ︱प्रेमातुर ︱एक दूसरे में खो जाने को तत्पर ︱चेतन और प्रकृति ︱
तुम चेतनरूप 1(एक ) और वह प्रकृतिरूपा 0(शुन्य ) ︱बस ये दो ही तो है 0(शुन्य )और 1(एक )︱
2,3,4,5,6,7,8,9 इसका कोई अस्तित्व नहीं ︱ये तो का 1 योग होना ही मात्र है ︱1 जो मै हूँ 0 जो तूम हो ︱
कहते है की ये (वासना) वर्जित फल मत खाना क्योकि यह पाप है?यदि यह पाप है तो इसे करने की तीव्र इच्छा क्यों ? ये पाप से अच्छा क्यों लगता है? ये पाप पाप नहीं पुण्य है︱ भगवान झूठ बोलता है वह हमे बहकाना चाहता है ︱
एक गर्म चाय कप को देखो जिसमे अंदर गर्म तरल भरा हुआ है और तब धुँआ स्वयं उड़ रहा है ︱सोचो ठंडी चाय में धुँआ उड़ सकता है क्या ?ठंडी चाय ︱ठन्डे लोग दरसल मै कहना चाहता हूँ हमारी क्रियाये स्वतः स्वाभाविक और प्राकृतिक है ︱अगर अंदर आग होगी तो धुँआ उठेगा ही और दरसल रहे ये आग खुद होती है पैदा नहीं की जा सकती और इसी गर्माहट, इसी ऊर्जा में जीवन का असल संगीत गुज़ रहा है ︱
कसे तारो से ही सरगम छेड़ी जा सकती है ढीले तारो से कभी सरगम नहीं छेड़ी जा सकती है
उससे कोई सुर ताल कभी नहीं बन सकता है ︱
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